अजी हाँ “आत्मनिर्भर” | "मुखबिर No. 1" के उलटे चश्मे से !

 

अजी हाँ “आत्मनिर्भर”

 उलटे चश्मे से देखा है कभी!

(समय निकाल कर लिखा है , इसे पढ़िये जरूर)

"swad na aye to paise vapis" 


एक टैग लाइन बहुत पोपुलर हो रखी है, “आत्मनिर्भर” भारत

 

में एक छोटे से कसबे से बिलोंग करता हूँ और हाँ इस देश के छोटे तबके से भी| आज कल एक टैग लाइन बहुत हे पोपुलर हो रखी है, “आत्मनिर्भर” भारत


चलिए जानते है कौन सी शये का नाम है “आत्मनिर्भर”

 

जब में छोटा था तो कोई आस पास अंग्रेजी में बोल देता था तो लगता था कि क्या जादू है भाई, पर बड़ा हुआ तो पता चला कि ऐसे जादू हिंदी में भी हो सकते है बशर्ते आपके पास हिंदी शब्दकोष का पूरा ज्ञान होना चहिए,

विश्वाश मानिये गा मेरी अपनी सोच है या कह लीजिए मेरा अपना नजरिया है “आत्मनिर्भर”  को देखने का

 

अब आते है मुद्दे पर

 

ओह बेटे की  “आत्मनिर्भर”

 

जब भी कोई बड़ा शब्द सुनने को मिलता है जैसे आत्मनिर्भर” सब उत्तेजित हो जाते है

80 रूपये किलो वाले टमाटर वाले शब्द भी आत्मनिर्भर शब्द के आगे हल्के पड़ जाते है|

 विश्वाश मानिये मीठी गोली से पेट नहीं भरता ! अगर भरता तो में पुरे शब्दकोष खा जाता |

 

काफी कैंची टाइप वाला शब्द है ये आत्मनिर्भर”

बोलने से पहले तक भी हम सब लोग अत्तंनिर्भर ही थे,  अब अत्तंनिर्भर तो छोड़िये, आपके शब्दों  से खुश होकर , अत्तंनिर्भर बनने के चक्कर में कई युवाओं का रोजगार, दिन का खर्च निकल रहा था वो भी बंद हो गया |

मेरे जैसे कई बन्दों के दिल में आत्म निर्भर बनने की बात आ गयी थी , फिर मैने सोचा पुरे कोरोना काल में सरकार द्वारा दी गयी  किसी भी सहायता का लाभ मुझ तक नहीं पहुँच पाया तो आत्मनिर्भर” बनना मेरे लिए लंदन घुम के आने के बरारबर है, ये तो जो दो हाथ और पैर भगवान् ने नवाज़े है मुझे उसी के बलबूते पर कहानी टिक्की है

 

आज आप अगर अपनी देसी गालियों में एक चक्कर लगा कर आओगे न तो आपको 100 में से 10 बीमार और 36 बेरोजगार मिलेंगे !

मानता हूँ की किसी एक व्यक्ति का सभी को देख पाना मुश्किल है पर फिर भी जिस बुनियाद पर विश्वाश बनता हैउसे खोखला मत होने दीजिये

 

मौजूदा हालात में बेरोजगार आदमी तो मृतक के समान है पर जिनके पास रोजगार है मेरे जैसे वो भी दिहाड़ी लगाने को तरसते है, शायद संसद भवन की कैंटीन के रेट से अगर आप बाहर मार्किट की तुलना करेंगे तो ऐसा लगेगा आप बाहर सब्जी लेने नहीं, सोना खरीदने जा रहे है!


 

“जैसे घर में बाप और देश में आप”

फिर भी में आपको सिर्फ एक सच्चाई से अवगत करवा रहा  हूँ ,  बस यूँ समझ लीजिये की ये एक वाक्य है जो घर में बच्चों और उनके पेरेंट्स में होता हैवही कटाक्ष और उतनी सी हे जदोजहद है आप तक बात पहुँचाने की, “जैसे घर में बाप और देश में आप”,  दोनों को हे में उतनी  तवज्जो देता हूँ |

 

 दरख्वास्त है सरकार से कि इस देश में सरकारी नौकरी करने वालों के इलावा भी एक तबका हैजिससे आप से और कोई डिमांड नहीं बस ये गुजारिश है की जिसके पास रोजगार है उसे अद्धा अधुरा  मिले और जिसके पास नही है उसे   रोजगार मिले|

और मेरी ये भी विनती है सरकार से की जो नही लाभ आप गरीब तबके को देना चाह रहे है, प्लीज उस पर भी नजर बनाए रखे की वाके में ही वो सही जगह , सही आदमी तक पहुँच जाये|

 

और मुझे गर्व है अपने आप पर की में ऐसी किसी भी सरकारी स्कीम का उपभोक्ता नही हूँ, में अटूट आत्मनिर्भर हूँ!

 

अगर आप भी हो अत्तंनिर्भर तो मुखबीर न. 1 करता है आपको सलाम!

 

जब तक आप अपनी राय मुखबीर के साथ शेयर नहीं करेंगे, तब तक मुखबिर की कलम में जान नहीं आएगी, अगर अच्छी या बुरी प्रतिकिर्ये नही आयेगी, तब तक कलम और शब्द दोनों बेजान है|

 

कमेंट जरुर कीजियेगा, गर आप भी रखते है जूनून कुछ कर दिखाने का और आप भी है, मुखबिर की तरह “आत्म -निर्भर”

 

फिर मिलेगा मुखबीर न. 1 आप से  बहुत जल्द एक नए नजरिये और नयी सोच के साथ|

 

मुखबिर न. 1 को  सब्सक्राइब कर आप अपनी मोजुदगी जाहिर कर सकते है

 

 

 

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